पावन जोत जगे मन में, तम दूर करो भर-दो उजियारो ।
जीवन के सब सार लिखें, नित लेखन, पाठन और निखारो ||
मान तजें, अभिमान तजें, तज औरन को यह दास निहारो ।
साधक आज करे विनती, अब मात कृपा कर आन पधारो ||
ज्ञानेश्वरी विद्यामति ब्राह्मणी, इह विधि वन्दन भी स्वीकारो ।
राग नहीं, न ही द्वेष करूँ कर, कर्म भले यह भाग्य संवारो ||
कण्ठ को गायन दो सुर देवी, शब्द को बल दे लक्ष्य सुधारो ।
साधक आज करे विनती, अब मात कृपा कर आन पधारो ॥