साथ हमारा जनम-जनम का रिश्तों का संसार।
फिर भी जग ने प्रीत को मेरी किया नहीं स्वीकार ||
प्रश्न मेरा क्यों राधा ही है मोहन का आधार ?
हाँ! इस जग ने प्रीत को मेरी किया नहीं स्वीकार ||
क्यों इस जग ने प्रीत को मेरी किया नहीं स्वीकार?
वचन किये पूरे तुमने सब कसमें मन से मानीं ।
मान दिया पत्नी का मुझको, मैं राजा की रानी ||
सजा के तुमने माँग को मेरी, दिये सभी अधिकार ।
फिर भी जग ने प्रीत को मेरी किया नहीं स्वीकार ।।
साध के साँसों में खामोशी,ले शब्दों में पीड़ा।
पूछ रही हूँ नटवर तुमसे, थी कैसी ये क्रीड़ा?
स्वयं प्रभु को जीता मैंने, गई जगत से हार |
हाँ! इस जग ने प्रीत को मेरी किया नहीं स्वीकार ॥
जब गौरी संग शंकर, सीता के संग राम सुहाए।
कष्ट मेरा फिर क्यों इस जग में राधे श्याम कहाए?
यही निवेदन है तुमसे इतिहास में हो ये सुधार।
हाँ इस जग ने प्रीत को मेरी किया नहीं स्वीकार ||