आया पहला पहला फागुन । उस पर यह बासन्ती यौवन || चूड़ी खनक रही है खन खन । पायल बोल रही है छन-छन । कोयलिया भी कुहुक रही है मतवारी । ऐसे में साजन तुमने मारी पिचकारी || भीगी अँगिया महक रही ज्यों फुलवारी । ऐसे में साजन तुमने मारी पिचकारी ॥ सरसों फूल रही खेतों में अमराई बौराई हो । रंग बिरंगी गलियों में बनवासी मोरनी आई हो || झूम-झूम कर नाच रही है, गेहूँ की बारी । ऐसे में साजन तुमने मारी पिचकारी ॥ खाने, पीने की सुध बिसरी, भूल गयी बाबुल माई । जो देखे वो यही कहे कि ये तो गयी है बौराई ॥ प्रेम जाल में फँस गयी मैं बेचारी । ऐसे में साजन तुमने मारी पिचकारी ||