चारों तरफ उजाला पर अँधेरी रात थी । जब वो हुआ शहीद वो उन दिनों की बात थी । आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार । दीपावली पे क्यों ना आये पापा अबकी बार ||
माँ क्यों ना तूने आज भी बिंदिया लगायी है। हैं दोनों हाथ खाली ना मेहँदी रचायी है | बिछुआ भी नहीं पाँव में, बिखरे से बाल हैं । लगती थी कितनी प्यारी ! अब ये कैसा हाल है। कुमकुम के बिना सूना सा लगता है श्रृंगार । दीपावली पे क्यों ना आये पापा अबकी बार ||
किसी के पापा उसको नये कपड़े लाये हैं । मिठाइयाँ और साथ में पटाखे लाये हैं | वो भी तो नये शूज पहन खेलने आया । पापा-पापा कहके सब ने मुझको चिढ़ाया । अब तो बता दो क्यों है सूना आँगन घर-द्वार। दीपावली पे क्यों ना आये पापा अबकी बार ॥