दो दिन हुए हैं तूने कहानी ना सुनाई । हर बार की तरह न तूने खीर बनाई || आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा | तुम से न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनूँगा || ऐसा क्या हुआ कि बताने से है इन्कार | दीपावली पे क्यों ना आये पापा अबकी बार ||
पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए | जुडने लगी थी लकड़ियाँ उसकी चिता के लिए || पूछते-पूछते वह हो गया निराश | जिस वक्त आँगन में आयी उसके पिता की लाश ॥
मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया । मकसद मिला है जीने का ख़्वाब मिल गया || पापा का जो काम रह गया है अधूरा | लड़कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा ॥ आर्शीवाद दो माँ काम पूरा हो इस बार ।