पतझर में ज्यों बसन्त की बयार कर गए तुम छू के क्या गये मुझे बहार कर गए.
मरुथल की गर्म रेत को चन्दन बना दिया मिट्टी-सी मेरी देह को कंचन बना दिया तन-मन में मेरे रास का मौसम है रात-दिन मुझको तुम्हारी प्रीत ने मधुबन बना दिया ज्यों मेनका के रूप-सा श्रृंगार कर गए तुम छू के क्या गये मुझे बहार कर गए
मुझको लुभाए चम्पा, चमेली की टोलियाँ मेहँदी के रंग वाली हथेली की डोलियाँ मिलकर के जबसे आयी सहेली मेरी तुम्हें कानों में घुल रही है सहेली की बोलियाँ आँखों को मेरी तुम जो जलविहार कर गए तुम छू के क्या गये मुझे बहार कर गए
अँगड़ाई ले रही है मेरे दिल की हर कली भँवरों की गूँज लगने लगी है मुझे भली अनबोले भावों से जो तुमने, बात यूँ कही बिखरी तुम्हारे प्यार की, खुशबू गली-गली हर राग के स्वभाव को, मल्हार कर गए तुम छू के क्या गये मुझे बहार कर गए