उनके निश्छल प्रेम के बदले खूब किया उपकार ।

उनके निश्छल प्रेम के बदले खूब किया उपकार । घर की देहरी छोड़ बसाया एक नया परिवार || अपने घर में रहे तिरस्कृत ईश्वर के अवतार । घर की देहरी छोड़ बसाया एक नया परिवार ||

बचपन के दिन याद करो जब पापा बने खिलौना । माँ होती थी लोरी थपकी, सूखा नरम बिछौना || चूम के माथा नज़र उतारी होगी सौ-सौ बार । घर की देहरी छोड़ बसाया एक नया परिवार ||

अपने घर की देहरी द्वारा, सदा लहू से सींचा । तुमने जो-जो सपने देखे उनका खाका खींचा ॥ अपने सपनों की दुनिया से बना दिया आधार । घर की देहरी छोड़ बसाया एक नया परिवार ||

हर चौखट पर मन्नत माँगी, दर-दर माथा टेका। कभी तुम्हारे सुख के आगे, अपना सुख न देखा || पर तुम बस आँसू दे पाये तुमको है अधिकार । घर की देहरी छोड़ बसाया एक नया परिवार ||

मत भूलो कि हर इक भूल पर पडा समय का चाँटा | जिसने जैसा जैसा बोया वैसा-वैसा काटा ॥ आज स्वयं को दोहरायेगा, कल फिर से इक बार । बच्चे होंगे जगह तुम्हारी, तुम होगे लाचार || घर की देहरी छोड़ बसाया एक नया परिवार ||

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