रूठे जो मुझसे तुम तो रूठी हैं, बदलियाँ

रूठे जो मुझसे तुम तो रूठी हैं, बदलियाँ।

नैनों से रात-दिन मेरे बरसी है बदलियाँ ||

सबके घरों में जा जा उतरी है बदलियाँ |

आँगन से मेरे क्यों नहीं गुजरी हैं बदलियाँ ||

सुबह के जूड़े में फूल टाँक जाओ तुम । संध्या के कंगनों पे किरणें बाँट जाओ तुम || होठों से होंठों का परिचय अधूरा है । मुझको सिन्दूरी रिश्ते में बाँध जाओ तुम || आ जाओ बरस जायें जो बिखरी हैं बदलियाँ । रूठे जो मुझसे तुम तो रूठी हैं, बदलियाँ ॥

सावन में पतझर की सूनी ये शाखें क्यों । कजरारी पानी भरी प्यासी ये आँखे क्यों ॥ मन में अँधियारे खण्डहर का है सूनापन | खिलते कमलों की मुरझाई पाँखे क्यों || प्रश्न मुझसे पूछती रहती हैं बदलियाँ । रूठे जो मुझसे तुम तो रूठी हैं, बदलियाँ |

पलकों पर स्वप्न कोई सजते सजते टूट गया। अधरों से अनबोला स्वर कोई छूट गया || पिघल – पिघल बह गया ये हृदय पाषाण का । संवेदन अन्तर का थमते – थमते फूट गया । फिर भी तुम्हारी राह तो तकती है बदलियाँ। रूठे जो मुझसे तुम तो रूठी हैं, बदलियाँ |

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